'बाबा' अनेक विधाओं को अपने अंदर समेटे हुऐ भारतीय संस्कृति को समर्पित एक अद्भुत व्यक्त्वि.....जिसे शब्दों से जाना- समझा नहीं जा सकता। सागर सी गहराइयों वाला जीवन जिसमें जितना गहरे उतरो उतनी ही विविधता मिले, पर्वत की तरह उन्नत चिंतन, जितना चढ़ो उतना ही उॅचा और भी दिखता रहे। दुनियॉ बहुत बड़ी है ढॅूढने पर ऐसे प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति दुनियॉ में मिल जाये...पर वह गॉव के सीधे साधे देहातियों से लेकर देश-विदेश के बुद्धिजीवियों तक महानगरीय सभ्यता में पले बड़े फेशनेबल युवावर्ग से लेकर कस्बाई बुजुर्गों तक, मजदूरों से लेकर व्यापारियों तक, साधु-संतों के आश्रमों से लेकर पश्चिमी रंग में रंगी फिल्मी नगरी तक, किसानों से लेकर सैनिकों तक सभी को समान रूप से अपना सा लगता हो, ऐसा मुश्किल है।

दिखावे की प्रवृत्ति से मुक्त बाबा को अंदर से जानना तो दूर की बात है अचानक मिल जाये तो बाहर से पहचानना भी कम मुश्किल नहीं। कई बार नाम सुनकर मिलने के लिये आये लोग बाबा से ही पूछ लेते हैं कि 'बाबाजी कहॉं मिलेंगे"? जिन हाथों में ब्रश या वाद्ययंत्र होना चाहिये, यदि वनवासी क्षैत्र में कुदाली चलाते मिलें तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है. पर बाबा को जानने वालों को कोई आश्चर्य नहीं होता. क्योंकि बाबा एक नाटक नहीं यथार्थ हैं ....बच्चों के साथ बच्चे बूढ़ों के साथ बूढ़े।

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मंचों पर पर जब लोग बाबाजी को सुनते हैं तो रूकना नहीं चाहते। देश-विदेश में श्रोताओं द्वारा सर्वाधिक सराहे और दिल से चाहे जाने वाले कवि बाबा को सुनकर ऐसा कभी नहीं लगता कि किसी और को सुना जा रहा है.....लगता है अन्तर के किसी कोने से स्वयं की आत्मा की आवाज बाहर निकलकर स्वयं के कानों तक पहुँचकर सारे शरीर को झकझोर रही है। काव्य के विविध रसों से जनमानस में उत्पन्न हॅसी, ऑसू, आक्रोश और मन का उद्वेलन सब मिलकर श्रोताओं को उनकी भारतीयता पर सोचने को मजबूर करता है। केवल कविता ही नहीं, व्यंग्य, चित्रकारी, लेखन, गायन, और दर्शन-प्रवचन आदि हर विधा के माध्यम से भारतीयता और हिन्दुत्व की गौरव गरिमा जगाने का लक्ष्य लेकर यायावर फकीर की तरह भटकने वाले बाबा बच्चे किशोर युवा और बुजु्रर्गों तक सबके अपने बाबा हैं। एक चित्रकार के रूप में विभिन्न विषयों पर बाबा की तूलिका चली है। भारतीय संस्कृति के गूढ़ दार्शनिक विषयों ऐतिहासिक संदर्भां, पौराणिक कथानकों, परम्पराओं आदि से लेकर प्राचीन विज्ञान तक तो रामजन्मभूमि,गौरक्षा, पर्यावरण, स्वदेशी जैसे ज्वलंत विषयों से लेकर राजनैतिक मुद्दों तक बाबा के रचनात्मक हाथ सक्रिय रहे हैं। देश-विदेशों में ये विषय जब चित्रा और कार्टून्स के रूप में आये तो एक आंदोलन बन गये। बाबा बहुमुखी कलाकार तो हैं ही, एक अच्छे मीडिया प्रबंधक भी रहे हैं। टी वी की दुनियॉ में धार्मिक प्रवचनों का प्रचलन जो अनेक धार्मिक चैनल्स की पृष्ठभूमि बना है, बाबा की देन है। बाबा की कला प्रस्तुति देखकर कोई तटस्थ नहीं रह सकता, उसे प्रतिक्रिया व्यक्त करना ही पड़ती है....या तो समर्थन करेगा या घोर विरोध। क्योंकि बाबा की कला सिर्फ कला नहीं....एक अभियान है।



कवि के रूप में बाबा

मंचीय कवि के रूप में बाबाजी ने एक लंबा समय देश के विभिन्न मंचों पर गुजारा. अपने विशिष्ठ अंदाज, विविध रसों की कविताओं तथा कविता की विभिन्न शैलियों के कारन श्रोताओं के प्रिय बने रहे. मौलिक एवं स्पष्ट विचारो ने उन्हें जहाँ सराहने वालों में प्रिय बनाया वहीं कुछ विरोधियों आलोचना का पात्र भी बनाया. बाबा ने कविता को राष्ट्रवाद से जोड़कर न सिर्फ स्वयं प्रस्तुतिया दी वरन नए कवियों की एक श्रँखला कड़ी की जो आज भी मंचों पर अपना रंग दिखा रही है. बाबाजी ने अनेक राजनैतिक तथा समयानुकूल रचनाएँ पैरोडी आदि के रूप में मंचों पर दी जिन्होंने अपने समय में धूम मचाई. लेकिन उनकी अनेक कालजयी रचनाये आज भी लोगों को प्रेरणा दे रही हैं. बाबाजी की अनेक कविताये तथा गीत संगीतबद्ध होकर कैसेट्स का रूप ले चुके हैं.

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Baba as Poet

Baba Ji spent a long time as a theatrical poet on various platforms. He was a favorite of audiences because of his unique and various styles and flavours. While he became favourite among those who appreciated his original and clear views, some opponents also criticized h im. Not only did Baba Ji infuse his poems with nationalism, but he also mentored a series of new poets who are still flourishing on various forums. Baba Ji created many political and timely parodies that made waves on many stages. His many compositions are still inspiring people. Many poems and songs of Baba Ji have taken musical form as cassettes.




बाबाजी एक चित्रकार

बचपन से चित्रकारी के प्रति रूचि रही परन्तु राजगढ़ में चित्रकला के शिक्षण कि व्यवस्था न होने के कारण बाबा ने कॉमर्स ऐसा स्नातकोत्तर का शिक्षण लिया बाद में उज्जैन से एम् ए चित्रकला में स्वर्ण पदक प्राप्त किया. चित्रकला के विभिन्न क्षेत्रों और विधाओ में बाबाजी कि रूचि रही. पर आज के चित्रकार बाबाजी उन कलाकारों से अलग है जिनकी कला दीर्घाओं की मोहताज होती है. बाबाजी कि पेंटिंग का कैनवास बहुत लंबा है. जो वनवासी गांवों की दीवारों, रेल के डब्बों, मंदिरों, पुस्तकों से लेकर सात समंदर पर के कई देशों के घरों और मंचों तक फैला हुआ है. बाबाजी की चित्रकारी धनिक वर्ग के झूठे अहंकार की तुष्टि नही करती....एक सार्थक आंदोलन को जन्म देती है...सुप्त भावना को उद्वेलित कराती है....एक यात्रा की प्रेरणा देती है.

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Baba Ji – an Illustrator

Baba Mourya was attracted to drawing since his childhood, but since there was no provision for artwork education at Rajgadh, Baba Ji graduated in Commerce. Later, he earned his M.A. in painting from Ujjain University. He has a penchant for various styles of painting, but Baba Ji is di fferent from today’s artists, whose art is dependent on galleries. Baba Ji’s canvas is so large that it extends to the walls of forester villages, rail coaches, mandirs, books, and up to the houses and platforms of many countries beyond the seven seas. Baba Ji’s painting does not satisfy the false ego of the wealthy, but gives voice to a meaningful movement, raises dormant emotions, and inspires the viewer on a journey.



कार्टूनिस्ट के रूप में बाबाजी.

बाबाजी अपनी स्पष्ट सोच, पैनी नजर और धारदार चित्रकारी के कारण कार्टूनिस्ट के रूप में बहुत चर्चित रहे. उनके तीखे तेवरों को सम्हाल पाना समाचार पत्रों के बस में भी नहीं था. इसलिए उन्होंने इन विषयों को स्वयं ही छोटी-छोटी पुस्तकों में अभिव्यक्ति दी. ये पुस्तिकाए लाखों की संख्यो में कई-कई बार प्रकाशित की गई. जहाँ से लेकर कई समाचार पत्र पत्रिकाओं ने इन्हें सीरीज में प्रकाशित किया. कई संस्थाओं ने इनकी प्रदर्शनियों भी लगवाई.

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Baba Ji as Cartoonist

Baba Ji is often introduced as a cartoonist because of his acute paintings, clear thinking, and sharp views. It was not possible for the newspapers to handle his sharp critiques, so he expressed these subjects himself in small booklets, which were published many times in the millions. Some newspapers and magazines eventually published them in series. Some institutions also exhibited them.



सांस्कृतिक दूत के रूप में बाबाजी

विदेशों में बाबा जी सिर्फ एक कलाकार के रूप में नहीं जाते. भारतीय संस्कृति का गौरव उनके साथ रहता है. जो उनकी जीवन शैली का एक अनिवार्य अंग है. विदेशो में आम आदमी से लेकर राजनैतिक तथा सामाजिक व्यक्तित्वो द्वारा उन्हें इसी रूप में देखा जाता है. बाबाजी दुनिया भर में दमदारी से भारत की संस्कृति का पक्ष रखते है. विभिन्न प्रदर्शनियों, कार्यक्रमों तथा अपने साक्षात्कारों में अपनी प्रस्तुतिया इसी रूप में देते हैं. अपनी यात्राओं में योग, कला, हिंदी तथा धार्मिक मान्यताओं का प्रचार-प्रसार द्वारा बाबाजी अपने इस स्वमान्य दायित्व को बखूबी निभा रहे हैं. translate in english

Baba Ji as a Cultural Ambassador

Baba Ji doesn’t go to foreign countries as just an artist, the glory of Bhartiya culturealso goes with him, which is a compulsory part of his lifestyle. He presents this authentic self to everyone, from the common man to top political and social personalities. Baba Ji forcefully puts forth the side of Bhartiya culture all over the world and presents his exhibitions, programs, and interviews in the same manner. In his travels, he is fulfilling his dharma by spreading yoga, art, Hindi, and religious beliefs.



बाबाजी...एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व

बाबा सत्यनारायण जिसे आम आदमी से लेकर विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य लोग चाहते है और सम्मान देते हैं जब उनसे सम्मान के बारे में पूछा जाता है तो वे कह देते है मैं खुला घूम रहा हूँ, यही सबसे बड़ा सरकारी सम्मान है. संत कबीरदास ने कहा था ‘ जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ’ बाबाजी इससे आगे की बात कहते हैं कि जिसका डर हो वो काम क्यों करना... जब घर होगा ही नहीं तो विरोधी क्या फूंकेंगे...? अधिकतर साधू संत या कवि स्वतंत्र होने के लिए निकलते है पर अपने अपने आश्रमों, संस्थानों एवं सरकारी सम्मानों में बंधकर सच बोलना ही भूल जाते हैं. बाबाजी ने इसी सिद्धांत के तहत कोई आश्रम या सरकारी सम्मानों का झंझट नहीं पाला. आज अनेक संत तथा साहित्यकार जहाँ सरकारी सम्मान और धार्मिक पदों के मोह कि कैद में बंद है वही बाबा एक सिंह कि भांति मंचों से लेकर लेखनी तक सच्चाई का गर्जन करते रहते है. कई बार लगता है बाबाजी किसी राजनैतिक दल से बंधे है परन्तु ऐसा नहीं... उन्हें सम्पूर्ण रूप में कोई दल नहीं चाहता और खंडित स्वरुप बाबाजी को पसंद नहीं. read more

चूँकि बाबाजी किसी पन्थ की औपचारिकता से बंधे नहीं है इसलिए उनकी जीवन शैली में हर पल भारतीयता तो दिखाती है पर कोई भौतिक बंधन नहीं दिखता है. बाबाजी संस्कृति के प्रहरी है परन्तु पुरानी सड़ी-गली मान्यताओं पर प्रहार करने में उन्हें कोई संकोच नहीं. बाबा के अचूक बाणों से कोई नहीं बचता, चाहे वो धार्मिक व्यक्तित्व हो, राजनेता हो, या धनिक व्यापारी. क्योंकि यायावरी जीवन बिताने वाले बाबा एक निष्काम विद्रोही है... अपने मन के ऐसे सम्राट है.....जिन्हें अपनी सत्ता के लिए किसी बाहरी प्रमाण की आवश्यकता नहीं.

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Baba Ji – A Revolutionary Personality

Baba Satyanarayan Mourya is loved and respected by common men to the most recognized people in the society, but when he is asked about it, he says the biggest official prize is that I am able to move freely. Sant Kabirdas said whoever can shun his house and comforts can join with me.B aba Ji goes one step ahead and says why do something for which you are afraid. If I don’t have a house, opponents won’t be able to burn it. Many Sadhu Sant and poets start movements, advocating for independent thinking, but get tied up with their Ashrams and institutions and forget about promoting truth to mass audiences. That’s why Baba Ji did not bother to build any Ashram and did not desire to receive any prize from the government. While many Sants and writers today are infatuated with the yearning of official recognition and religious positions, Baba is roaring like a lion with the truth that he shares on various platforms and his writings. Sometimes, it appears that Baba Ji supports a political party, but it is not so. read more

No political party supports him fully and Baba Ji does not want to split his personality and dilute his message. Because Baba Ji is not tied to the formalities of any sect, his lifestyle always reflects a pure Bhartiya essence, devoid of any material attachment. Baba Ji is a watchman of culture but does not hesitate to attack the rotten beliefs of yesteryears. No one can escape the effectual verbal arrows of Baba, be it a religious personality, a politician, or rich businessman, because Baba lives a life like a gypsy and selfless rebellion. He is his own master that does not need any certificate to prove his sovereignty.



मीडिया कलाकार के रूप में बाबाजी

विद्यार्थी कल से मंच एवं अभिनय से जुड़े रहे बाबाजी ने कई नाटकों की रचनाये जो मुंबई में कई प्रतिष्ठित हालों में अभिनीत हुए. कई स्कूलों में भी बच्चों को प्रशिक्षण दिया. बाद में एक लंबे समय तक जी टी वी से जुडकर स्क्रिप्ट्स रायटर, निर्देशक, सेट डिजाइनर, प्रोगामर, एवं समन्वयक आदि के रूप में कार्य किया. इस अवधि में उन्होंने विभिन्न प्रकार की पटकथाएं लिखी. कई गीतों की रचनाये भी की जो विभिन्न कार्यक्रमों में प्रसारित हुए. उनके लिखे गीतों को सर्वश्री सुरेश वाडेकर, सोनू निगम, अन्नू कपूर, अरविंद र्सिंह आदि कलाकारों ने कई बार स्वर दिए. टी वी जगत में संतों के प्रवचनों को एक नियमित आकार देकर उन्होंने सबसे पहले जागरण एवं भक्तिभाव के नाम से एपीसोड प्रस्तुत करना प्राम्भ किया. जिसे बाद मे सभी चैनलों ने न सिर्फ अपनाया वरन धर्म को समर्पित कई चैनल भी चलाये. बाद में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मद्देनजर सीधे मंचीय कार्यक्रमों से जुड गए.

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Baba Ji as Media Artist

Having associated with the stage and acting since his student life, Baba Ji wrote some plays that were staged at various celebrated halls of Mumbai. He also taught children in some schools. Later on, he worked at Zee TV for a long time as script writer, director, set designer, program mer, and coordinator. During this time, he wrote various screenplays and wrote some songs that were broadcasted in various programmes. Suresh Wadkar, Sonu Nigam, Annu Kapoor, and Arvind Singh, etc. gave their voices to Baba Ji’s songs. He gave regular structure to Sant discourses in TV programmes and started Jagran and Bhakti Bhav episodes that other channels not only adopted, but eventually spun off into standalone channels dedicated to Dharma. Later looking for freedom to express his views, he got directly associated with theatrical programmes.



बाबाजी.....भिन्न भाषा, भिन्न वेश में...भिन्न-भिन्न परिवेश में

बाबाजी के बारे में ये महत्वपूर्ण बात है की उन्हें कहीं भी बहार का आदमी नहीं माना जाता. देश के कौने कौने ही नहीं, दुनिया भर में अनेक जगह पर बाबाजी न सिर्फ गए है वरन उन्हें अपनत्व की डोरी से बांधकर वसुधैव कुटुम्बकम का सूत्र दिया है. हर उम्र, हर जाति, हर मत-पंथ और हर क्षेत्र के लोग जहाँ बाहरी लोगों को अंदर प्रवेश नहीं देते वे बाबाजी से ऐसे जुड़ जाते हैं जैसे बाबाजी उन्ही के बीच पले-बड़े हो. अन्य देशों के अन्य धर्मी लोग भी बाबा के साथ सहजता महसूस करते हैं.....क्योंकि भारतीय मान्यताये जो बाबाजी की स्वभावगत विशेषता है...किसी के लिए भी अपनी सी है.

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Baba Ji – in different language, garb, and surrounding

The important thing about Baba Ji is that he is never considered an outsider, no matter where he goes in Bharat or otherparts of the world. He has given the message of Vasudev Kutumbakam and oneness. People of all ages, clans, sects, or areas, even where not everyone is accepted easil y, are attracted to Baba ji’s message, as he has grown up with and embodies the ethos of these common folk. People of other countries and religions also feel ease with him. The belief systems of Bharat that are an innate part of Baba Ji make everyone comfortable with him.



बाबाजी...यहाँ – वहाँ, जहाँ – तहाँ

बाबाजी किसी सांचे में बंधे नहीं है. गाँव देहात के सीधेपन से लेकर विदेशों की आधुनिकता, खेल के मैदान से लेकर सागरतट तक, घरेलू कामकाज से लेकर टेक्नोलॉजी तक, योग से लेकर आधुनिक विद्यार्थियों के विषयों तक बाबाजी सभी जगह सहज होते हैं. धर्म से लेकर हास्य व्यंग्य तक एक ही व्यक्तित्व को देखकर अटपटा लगता है. बाहरी दिखावे से बाबाजी को पहचान पाना मुश्किल होता है. क्योंकि एक व्यक्ति में अनेक व्यक्तित्व मिले हुए है.......इसीलिये कई बार तो लोग बच्चों के साथ खेलते हुए बाबाजी से ही लोग पूछ बैठते हैं कि बाबाजी कहाँ मिलेंगे ? बाबाजी की मूल बोली मालवी हिंदी है पर देश और विदेश के हर भाषा और संस्कृति के लोगों से उनका आत्मीय जुड़ाव है. इसलिए कहा जा सकता है बाबाजी तो सबके है और सब बाबाजी के हैं. translate in english

Baba Ji – Everywhere

Baba Ji is not tied to any preconceived mold. He feels at home, be it the simplicity of a village life, modernness of abroad, from the playing fieldto the beaches, from domestic work to technology, or from Yoga to the subjects of modern students. It seems strange to see the same perso nality speaking on Dharma to humor and satire. It’s difficult to recognize him from his outer look, because there are many personalities mixed in one individual. Sometimes when Baba Ji is playing with children, people ask him where he can be found!


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